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हरा धनिया के फायदे और नुकसान Coriander Health Benefits In Hindi

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hari dhaniya ke fayde green coriander benefits

हरा धनिया के फायदे

हमारी किडनी एक बेहतरीन फ़िल्टर हैं जो सालो से हमारे खून की गंदगी को साफ़ करने का काम करती हैं मगर हर फ़िल्टर की तरह इसको भी साफ़ करने की ज़रुरत हैं ताकि ये और भी अच्छा काम करे।

■   खून को साफ़ करने का सबसे आसान घरेलु उपाय, ये शरीर की गंदगी को बाहर निकाल कर इसको निरोगी काया बना देगा

आज हम आपको बता रहे हैं इसकी सफाई के बारे में और वह भी सिर्फ 5 रुपैये में।

एक मुट्ठी भर धनिया लीजिये इसको छोटे छोटे टुकड़ो में काट ले और अच्छी तरह धुलाई कर ले। फिर एक बर्तन में १ लीटर पानी डाल कर इन टुकड़ो को डाल दे, 10 मिनट तक धीमी आंच पर पकने दे, बस अब इसको छान ले और ठंडा होने दो अब इस ड्रिंक को हर रोज़ एक गिलास खाली पेट पिए। आप देखेंगे के आपके पेशाब के ज़रिये सारी गंदगी बाहर आ रही हैं। धनिया की पत्ती को चटनी

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NOTE : – इसके साथ थोड़ी से अजवायन डाल ले तो सोने पे सुहागा हो जाए। और ये उपाय कोई इलाज नहीं है, किडनी से सम्बंधित मरीज सिर्फ डॉक्टर से सलाह ले कर ही इसको अजमाए. ये सिर्फ एक हेल्दी व्यक्ति के लिए है जिसकी किडनी सही काम कर रही हो..

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अब समझ आया के हमारी माँ अक्सर धनिये की चटनी क्यों बनती थी और हम आज उनको old fashion कहते हैं।.

हरा धनिया के फायदे –
1. पाचनशक्ति बढ़ाये (Dhaniya Benefits For Digestion)
2. मस्‍सों से मुक्ति दिलाये (Dhaniya Benefits For Warts)
3. कमजोरी दूर करें (Dhaniya Benefits For Weakness)
4. आंखों की रोशनी बढ़ाये (Dhaniya Benefits For Eyes)
5. श्‍वास रोगों को दूर करें (Dhaniya Benefits For Breathing Problems)
6. त्‍वचा के लिए लाभकारी (Dhaniya Benefits For Skin)
8. वजन कम करने में धनिया के फायदे (Dhaniya Benefits For Weight Loss)
■   सिर्फ़ 7 रातों तक सोते वक़्त अजवायन को चबाकर ऊपर से गरम पानी पीने के फ़ायदे जान हैरान रह जाओगे

हरा धनिया के फायदे

Hara Dhaniya Ke Fayde Aur Nuksan In Hindi

1. पाचनशक्ति बढ़ाये (Dhaniya Benefits For Digestion)

हरा धनिया पेट की समस्‍याओं का निवारण करता है, यह पाचनशक्ति बढ़ाता है। धनिया की ताजी पत्‍तों को छाछ में मिलाकर पीने से बदहजमी, मतली, पेचिश और कोलाइटिस में आराम मिलता है। हरा धनिया, हरी मिर्च, कसा हुआ नारियल और अदरक की चटनी बनाकर खाने से अपच के कारण पेट में होने वाले दर्द से आराम मिलता है। पेट में दर्द होने आधा गिलास पानी में दो चम्‍मच धनिया डालकर पीने से पेट दर्द से राहत मिलती है। पेट के रोगों में हरा धनिया 

पाचनशक्ति-digestion

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2. मस्‍सों से मुक्ति दिलाये (Dhaniya Benefits For Warts)

मस्‍सों से मुक्ति के लिए हरा धनिया एक कारगर उपाय है। इस उपाय को करने के लिए हरे धनिया को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे रोजाना मस्सों पर लगाएं। मस्सों के लिए हरा धनिया के फायदे

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■  सहजन के फायदे

3. कमजोरी दूर करें (Dhaniya Benefits For Weakness)

अगर आपको थका-थका या शरीर में कमजोरी  महसूस होती है या फिर चक्कर आते हो तो दो चम्मच धनिए के रस में दस ग्राम मिश्री व आधी कटोरी पानी मिलाकर सुबह-शाम लेने से फायदा होता है। Hara Dhaniya Khane Ke Fayde – Benefits Of Dhania

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4. आंखों की रोशनी बढ़ाये (Dhaniya Benefits For Eyes)

नियमित रूप से हरे धनिये का प्रयोग अपने खाने में करने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है। क्‍योंकि हरे धनिये में विटामिन ‘ए’ भरपूर मात्रा में होता है जो आंखों के लिए बहुत आवश्‍यक होता है। आंखों के लिए हरा धनिया

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5. श्‍वास रोगों को दूर करें (Dhaniya Benefits For Breathing Problems)

हरा धनिया श्‍वास संबंधी रोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। खांसी, दमा या सांस फूलता हो तो धनिया तथा मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर रख लें। एक चम्मच चावल के पानी के साथ रोगी को पिलाएं। कुछ दिन नियमित रूप से इस उपाय को करने से आराम आने लगेगा। श्वास रोगों के लिए हरा धनिया के फायदे 

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6. त्‍वचा के लिए लाभकारी (Dhaniya Benefits For Skin)

एक चम्मच धनिया के जूस को चुटकी भर हल्दी के साथ मिलाकर मुंहासे पर लगाना लाभप्रद होता है। चेहरे पर तिल होने पर रोजाना हरे धनिए की पत्तियों को रगडऩे से लाभ होता है। त्वचा के रोगों को दूर करने के लिए हरा धनिया के फायदे उपयोग

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7. सूजन को कम करता है (Dhaniya Benefits For Swelling)

धनिए में एंटी-इंफ्लेमेंट्री गुण होते हैं इसलिए धनिए का सेवन करने से सूजन कम होती है। त्वचा की सूजन कम करने हेतु धनिए के एसेशिंयल ऑयल का भी उपयोग करना लाभकारी होता है। सूजन कम करने के लिए धनिया का उपयोग 

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8. वजन कम करने में धनिया के फायदे (Dhaniya Benefits For Weight Loss)

धनिए के बीज वजन कम करने के लिए उपयोगी होते हैं। गर्म पानी में उबाल कर इनकी चाय बना कर लगातार कुछ दिन पीने से वजन कम होता है।

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■  लिवर का इलाज

9. सर्दी -जुकाम से लड़ने में (Dhania Benefits For Cold-Cough)

धनिए के बीज में विटामिन सी के साथ ही जीवाणुरोधी गुण होते हैं। इसलिए सर्दी-जुकाम में इन बीजों को उबालकर इनका पानी पीना सेहत के लिए लाभकारी होता है। सर्दी-जुकाम में धनिया के फायदे 

10. खून की कमी में धनिया का उपयोग (Dhaniya Benefits For Anemia)

धनिए के बीज में पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है जो कि खून में हिमोग्लोबिन को बनाता है। यहीं कारण है कि धनिए के बीज का सेवन करने से खून की कमी दूर होती है।

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■  घुटनों के दर्द का इलाज

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•   टाइफाइड में भी यह उपयोगी है, टाइफाइड होने पर हरी धनिया के पत्‍तों का सेवन करना चाहिए।

•   अधिक मा*सिक धर्म आने पर छह ग्राम धनिया के बीज को आधा लीटर पानी में उबालें। पानी आधा होने पर थोड़ी सी शक्कर मिलाकर गर्म पीएं।

•   लू लगने पर हरी धनिया को पीसकर उसका रस निकाल लीजिए, इस रस को चीनी के साथ मिलाकर पीने से आराम मिलता है।

•   नींद न आती हो तो हरे धनिए में मिश्री मिलाकर चाशनी बनाएं। दो चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ लें।

•   सिर के बाल झडऩे पर हरे धनिए का रस लगाएं। Hara dhania benefits in hindi

■  मूत्र का रंग बताता है सेहत का हाल

सप्तपर्णी के आयुर्वेदिक और औषधीय गुणों को देखकर दंग रह जायेंगे आप

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अक्सर उद्यानों, सड़कों और घरों के आसपास सुंदर सफेद फूलों वाले मध्यम आकार के सप्तपर्णी के पेड़ देखे जा सकते हैं। यह एक ऐसा पेड़ है जिसकी पत्तियाँ चक्राकार समूह में सात – सात के क्रम में लगी होती है और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम एल्सटोनिया स्कोलारिस है। सुंदर फ़ूलों और उनकी मादक गंध की वजह से इसे उद्यानों में भी लगाया जाता है और फूलों को अक्सर मंदिरों और पूजा घरों में भगवान को अर्पित भी किया जाता है। आदिवासियों के बीच इस पेड़ की छाल, पत्तियों आदि को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर अपनाया जाता है। चलिए आज जानते हैं सप्तपर्णी के औषधीय महत्व के बारे में।

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  • आधुनिक विज्ञान इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाईन से बेहतर मानता है। आदिवासियों के अनुसार इस पेड़ की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाया जाए और 2-6 ग्राम मात्रा का सेवन किया जाए, इसका असर मलेरिया के बुखार में तेजी से करता है। मजे की बात है इसका असर कुछ इस तरह होता है कि शरीर से पसीना नहीं आता जबकि क्विनाईन के उपयोग के बाद काफी पसीना आता है।

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  • पेड़ से प्राप्त दूधनुमा द्रव को तेल के साथ मिलाकर कान में ड़ालने से कान दर्द में आराम मिल जाता है। डाँगी आदिवासियों की मानी जाए तो रात सोने से पहले २ बूंद द्रव की कान में ड़ाल दी जाए तो कान दर्द में राहत मिलती है।

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  • पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि प्रसव के बाद माता को यदि छाल का रस पिलाया जाता है तो माता के स्तनों से दुध स्त्रावण की मात्रा बढ जाती है।
  • दाद, खाज और खुजली में भी आराम देने के लिए सप्तपर्णी की छाल के रस का उपयोग किया जाता है। छाल के रस के अलावा इसकी पत्तियों का रस भी खुजली, दाद, खाज आदि मिटाने के लिए काफी कारगर होता है। आधुनिक विज्ञान भी इन दावों से काफी सहमत है।
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  • पेड़ से प्राप्त होने वाले दूधनुमा द्रव को घावों, अल्सर आदि पर लगाने से आराम मिल जाता है। दूधनुमा द्रव को घावों पर उंगली से लगाया जाए तो जल्दी घाव सूखने लगते हैं। घावों पर द्रव को प्रतिदिन रात सोने से पहले लगाना चाहिए।
  • सप्तपर्णी की छाल का काढा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार इसकी छाल को सुखा लिया जाए और चूर्ण तैयार किया जाए। चूर्ण को पानी के साथ उबालकर काढा तैयार किया जाता है और रोगी को दिया जाता है।

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  • जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढा बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है।

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  • डाँग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार किसी भी तरह के दस्त की शिकायत होने पर सप्तपर्णी की छाल का काढा रोगी को पिलाया जाए, दस्त तुरंत रुक जाते हैं। काढे की मात्रा ३ से ६ मिली तक होनी चाहिए तथा इसे कम से कम तीन बार प्रत्येक चार घंटे के अंतराल से दिया जाना चाहिए।
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हाथ/पैर होते है सुन्न या सोते है तो हो जाए सावधान जानिए ये क्या है/इलाज-Numbness in Hands and Feet

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कभी-कभी हमारे हाथ और पैर सुन्‍न पड़ जाते हैं, जिससे हमें किसी भी चीज़ को छूने का एहसास मालूम नहीं पड़ पाता। इसके साथ ही हो सकता है कि आपको प्रभावित स्‍थान पर दर्द, कमजोरी या ऐठन भी महसूस होती हो। हममें से लगभग सभी ने अनुभव किया होगा। शरीर के अंग सुन्‍ना पड़ जाना एक आम सी समस्‍या है। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे लगातार हाथों और पैरों पर प्रेशर, किसी ठंडी चीज को बहुत देर तक छूते रहना, तंत्रिका चोट, बहुत अधिक शराब का सेवन, थकान, धूम्रपान, मधुमेह, विटामिन या मैग्‍नीशियम की कमी आदि।

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अगर यह समस्‍या कुछ मिनटों तक रहती है तो कोई परेशानी की बात नहीं है लेकिन अगर यही कई कई घंटों तक बनी रहे तो आपको डॉक्‍टर के पास जाने की आवश्‍यकता है। हो सकता है कि किसी बड़ी बीमारी का लक्षण हो। हाथ पैर का सुन्‍न हो जाना बड़ा ही कष्‍टदायक होता है क्‍योंकि ऐसे में फिर आपका कहीं मन नहीं लगता। पर आप चाहें तो इस समस्‍या को घरेलू उपचार से ठीक कर सकते हैं।

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मैग्‍नीशियम का सेवन करें

हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां, मेवे, बीज, ओटमील, पीनट बटर, सोया बीन, अवाकाडो, केला, डार्क चॉकलेट और लो फैट दही आदि खानी चाहिये। आप रोजाना मैग्‍नीशियम 350 एम जी की सप्‍पलीमेंट भी ले सकती हैं। पर इस बारे में डॉक्‍टर से जरुर बात कर लें।

गरम पानी का सेंक

सबसे पहले प्रभावित जगह पर गरम पानी की बोतल का सेंक रखें। इससे वहां की ब्‍लड सप्‍पलाई बढ़ जाएगी। इससे मासपेशियां और नसें रिलैक्‍स होंगी। एक साफ कपड़े को गरम पानी में 5 मिनट के लिये भिगोएं और फिर उससे प्रभावित जगह को सेंके। आप चाहें तो गरम पानी से स्‍नान भी कर सकती हैं।

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मसाज

जब भी हाथ पैर सुन्‍न हो जाएं तब उन्‍हें मसाज देना शुरु कर दें। इससे ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ता है। गरम जैतून तेल, नारियल तेल या सरसों के तेल से मसाज करें।

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खूब खाएं Vitamin B फूड

अगर हाथ पैरों में जन्‍नाहट होती है तो अपने आहार में ढेर सारे विटामिन बी, बी6 और बी12 को शामिल करें। इनके कमी से हाथ, पैरों, बाजुओं और उंगलियों में सुन्‍नता पैदा हो जाती है। आपको अपने आहार में अवाकाडो, केला, बींस, ओटमील, दूध, चीज़, दही, मेवे, बीज और फल शामिल करने चाहिये। आप चाहें तो vitamin B-complex supplement भी दिन में दो बार खा सकते हैं।

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हल्‍दी

हल्‍दी में ऐसे तत्‍व पाए जाते हैं जो ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ाते हैं। साथ ही यह सूजन, दर्द और परेशानी को भी कम करती है। एक गिलास दूध में 1 चम्‍मच हल्‍दी मिक्‍स कर के हल्‍की आंच पर पकाएं। इसे पीने से काफी राहत मिलेगी। आप हल्‍दी और पानी के पेस्‍ट से प्रभावित स्‍थान की मसाज भी कर सकते हैं।

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■   हल्दी को हल्के मत लेना, इसके चमत्कारी गुणो के आगे ये 30 रोग घुटने टेक देते है, बस उपयोग करने का तरिका पता होना चाहिए

व्‍यायाम

व्‍यायाम करने से शरीर में ब्‍लड र्स्‍कुलेशन होता है और वहां पर ऑक्‍सीजन की मात्रा बढ़ती है। रोजाना हाथ और पैरों का 15 मिनट व्‍यायाम करना चाहिये। इसके अलावा हफ्ते में 5 दिन के लिये 30 मिनट एरोबिक्‍स करें, जिससे आप हमेशा स्‍वस्‍थ बने रहें।

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दालचीनी

दालचीनी में कैमिकल और न्‍यूट्रियंट्स होते हैं जो हाथ और पैरों में ब्‍लड फ्लो को बढ़ाते हैं। एक्‍सपर्ट बताते हैं रोजाना 2-4 ग्राम दालचीनी पाउडर  को लेने से ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ता है। इसको लेने का अच्‍छा तरीका है कि एक गिलास गरम पानी में 1 चम्‍मच दालचीनी पावडर मिलाएं और दिन में एक बार पियें। दूसरा तरीका है कि 1 चम्‍मच दालचीनी और शहद मिला कर सुबह कुछ दिनों तक सेवन करें।

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प्रभावित हिस्‍से को ऊपर उठाएं हाथ और पैरों के खराब ब्‍लड सर्कुलेशन से ऐसा होता है। इसलिये उस प्रभावित हिस्‍से को ऊपर की ओर उठाइये जिससे वह नार्मल हो सके। इससे सुन्‍न वाला हिस्‍सा ठीक हो जाएगा। आप अपने प्रभावित हिस्‍से को तकिये पर ऊंचा कर के भी लेट सकते हैं।

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गिलोय की बेल पूरे भारत में पाई जाती है। इसकी आयु कई वर्षों की होती है। गिलोय का वैज्ञानिक नाम है–तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली, गुजराती में गालो, मराठी में गुलबेल, तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन, गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं ।

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नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो । मधुपर्णी, अमृता, तंत्रिका, कुण्डलिनी गुडूची आदि इसी के नाम हैं। गिलोय की बेल प्रायः कुण्डलाकार चढ़ती है। गिलोय को अमृता भी कहा जाता है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी, वहां वहां गिलोय उग गई।

यह एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। बेल को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये नीचे आपको हरा,मांसल भाग दिखाई देगा । इसका काढा बनाकर पीजिये । यह शरीर के त्रिदोषों को नष्ट कर देगा ।

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आज के प्रदूषणयुक्त वातावरण में जीने वाले हम लोग हमेशा त्रिदोषों से ग्रसित रहते हैं। त्रिदोषों को अगर मैं सामान्य भाषा में बताने की कोशिश करूं तो यह कहना उचित होगा कि हमारा शरीर कफ ,वात और पित्त द्वारा संचालित होता है। पित्त का संतुलन गडबडाने पर। पीलिया, पेट के रोग जैसी कई परेशानियां सामने आती हैं । कफ का संतुलन बिगडे तो सीने में जकड़न, बुखार आदि दिक्कते पेश आती हैं । वात [वायु] अगर असंतुलित हो गई तो गैस ,जोडों में दर्द ,शरीर का टूटना ,असमय बुढापा जैसी चीजें झेलनी पड़ती हैं ।गिलोय की पत्तियों और तनों से सत्व निकालकर इस्तेमाल में लाया जाता है। गिलोय को आयुर्वेद में गर्म तासीर का माना जाता है। यह तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है।

■   भोजन में करें ये छोटा सा परिवर्तन, कभी नहीं होगा कैंसर
  • अगर आप वातज विकारों से ग्रसित हैं तो गिलोय का पाँच ग्राम चूर्ण घी के साथ लीजिये ।
  • गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती।
  • पित्त की बिमारियों में गिलोय  का चार ग्राम चूर्ण चीनी या गुड के साथ खालें तथा अगर आप कफ से संचालित किसी बीमारी से परेशान हो गए है तो इसे छः ग्राम कि मात्र में शहद के साथ खाएं ।
  • अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ- पुनर्नवा (साठी, जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें। किडनी के लिए भी यह बहुत बढ़िया है।
  • गिलोय एक रसायन एवं शोधक के रूप में जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने देती है । यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है। किसी ही प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह काम करती है । मलेरिया बुखार से तो इसे जातीय दुश्मनी है। पुराने टायफाइड ,क्षय रोग, कालाजार ,पुराणी खांसी , मधुमेह [शुगर ] ,कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ पहुंचता है ।

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  • इससे पेट की बीमारी, दस्त,पेचिश, आंव, त्वचा की बीमारी, liver की बीमारी, tumor, diabetes, बढ़ा हुआ E S R, टी बी, white discharge, डेंगू व हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं ।
■   इस फल को खाएं, उग आएंगे सिर के उड़े हुए बाल…….!
  • बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। इसे सोंठ के साथ खाने से आमवात-जनित बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं ।
  • इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है। इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं पत्तों का नहीं, उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है।डंडी को ऐसे भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें, हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी।इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते . टॉक्सिन्स खत्म हो जाते हैं, और बुखार तो बिलकुल नहीं आता। पुराने से पुराना बुखार खत्म हो जाता है।
  • गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धड़कन को काबू में लाया जा सकता है।
  • गिलोय के काण्ड में स्टार्च के अलावा अनेक जैव सक्रिय पदार्थ पाए जाते हैं। इसमें तीन प्रकार के एल्केलाइड पाए जाते हैं जिनमें बरबेरीन प्रमुख है। इसमें एक कड़वा ग्लूकोसाइड ‘गिलोइन’ भी पाया जाता है। इसके धनसत्व में जो स्टार्च होता है वह ताजे में 4 प्रतिशत से लेकर सूखे में 1.5 प्रतिशत होता है।
  • इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा हो सकता है। इसके पत्ते पान के आकार के होते हैं इसमें ग्रीष्म ऋतु में छोटे−छोटे पीले रंग के गुच्छों में फूल आते हैं। इसके फल मटर के दाने के आकार के होते हैं जो पकने पर लाल हो जाते हैं। औषधि के रूप में इसके काण्ड तथा पत्तों का प्रयोग किया जाता है।
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गिलोय के गुणों की संख्या काफी बड़ी है। इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है। इसे नीम और आंवला के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं। इसे खून की कमी, पीलिया और कुष्ठ रोगों के इलाज में भी कारगर माना जाता है। लंबे समय से चलने वाले बुखार के इलाज में गिलोय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाता है जिससे यह डेंगू तथा स्वाइन फ्लू के निदान में बहुत कारगर है। इसके दैनिक इस्तेमाल से मलेरिया से बचा जा सकता है। गिलोय के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।

कैंसर में लाभकारी

कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें।

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खून की कमी दूर करें

गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसके लिए प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी या शहद मिलाकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।

Anemia-Disease

■   खून की कमी (एनीमिया) : कारण, लक्षण और उपाय – Anemia Diet Chart In Hindi

पीलिया में फायदेमंद

गिलोय का सेवन पीलिया रोग में भी बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गिलोय का एक चम्मच चूर्ण, काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है। या गिलोय के पत्तों को पीसकर उसका रस निकाल लें। एक चम्‍मच रस को एक गिलास मट्ठे में मिलाकर सुबह-सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
जलन दूर करें! अगर आपके पैरों में जलन होती है और बहुत उपाय करने के बाद भी आपको कोई फायदा नहीं हो रहा है तो आप गिलोय का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए गिलोय के रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करें इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है।

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मधुमेह में लाभकारी

ग्लूकोज टोलरेंस तथा एड्रीनेलिनजन्य हाइपर ग्लाइसीमिया के उपचार में भी गिलोय आश्चर्यजनक परिणाम देती है। इसके प्रयोग से रक्त में शर्करा का स्तर नीचे आता है। मधुमेह के दौरान होने वाले विभिन्न संक्रमणों के उपचार में भी गिलोय का प्रयोग किया जाता है।

diabetes sugar ke lakshan aur ilaj in hindi

मलेरिया, टायफायड और टीबी में गुणकारी

बार−बार होने वाला मलेरिया, कालाजार जैसे रोगों में भी यह बहुत उपयोगी है। मलेरिया में कुनैन के दुष्प्रभावों को यह रोकती है। टायफायड जैसे ज्वर में भी यह बुखार तो खत्म करती है रोगी की शारीरिक दुर्बलता भी दूर करती है। टीबी के कारक माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलम बैसीलस जीवाणु की वृद्धि को यह रोक देती है। यह रक्त मार्ग में पहुंच कर उस जीवाणु का नाश करती है और उसकी सिस्ट बनाने की प्रक्रिया को बाधित करती है। ऐस्केनिशिया कोलाइ नामक रोगाणु जिसका आक्रमण मुख्यतः मूत्रवाही संस्थान तथा आंतों पर होता है, को यह समूल नष्ट कर देती है।

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■   मलेरिया में क्या खाये क्या ना खाएं, परहेज – Malaria Diet Chart In Hindi

कान दर्द में लाभकारी

गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है। साथ ही गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानों में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है।

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मोटापा कम करें

गिलोय मोटापा कम करने में भी मदद करता है। मोटापा कम करने के लिए गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ लें। या गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाकर इसमें शिलाजीत मिलाकर पकाएं और सेवन करें। इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।

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उल्टियां में फायदेमंद

गर्मियों में कई लोगों को उल्‍टी की समस्‍या होती हैं। ऐसे लोगों के लिए भी गिलोय बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गिलोय के रस में मिश्री या शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है।

Vomiting

■   आँखों की रोशनी (Eye sight) को बाज़ से भी तेज़ करना है तो अपनाएँ काली मिर्च, मिश्री, गौघृत का ये मिश्रण

पेट के रोगों में लाभकारी

गिलोय के रस या गिलोय के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट से संबंधित सभी रोग ठीक हो जाते है। इसके साथ ही आप गिलोय और शतावरी को साथ पीस कर एक गिलास पानी में मिलाकर पकाएं। जब उबाल कर काढ़ा आधा रह जाये तो इस काढ़े को सुबह-शाम पीयें।

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बुखार में फायदेमंद

पुराने बुखार या 6 दिन से भी ज्यादा समय से चले आ रहे बुखार के लिए गिलोय उत्तम औषधि है। इस प्रकार के बुखार के लिए लगभग 40 ग्राम गिलोय को कुचलकर मिट्टी के बर्तन में पानी मिलाकर रात भर ढक कर रख देते हैं। सुबह इसे मसल कर छानकर रोगी को दिया जाना चाहिए। इसकी अस्सी ग्राम मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है।

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ऐसा बुखार जिसके कारणों का पता नहीं चल पा रहा हो उसका उपचार भी गिलोय द्वारा संभव है। पुररीवर्त्तक ज्वर में गिलोय की चूर्ण तथा उल्टी के साथ ज्वर होने पर गिलोय का धनसत्व शहद के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए। गिलोय एक रसायन है जो रक्तशोधक, ओजवर्धक, हृदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर लेने से बार-बार होने वाला बुखार ठीक हो जाता है। या गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से तेज बुखार तथा खांसी ठीक हो जाती है। बुखार या लंबी बीमारी के बाद आई कमजोरी को दूर करने के लिए गिलोय के क्वाथ का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए 100 ग्राम गिलोय को शहद के साथ पानी में पकाना चाहिए। सुबह−शाम इसकी 1−2 औंस मात्रा का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में शक्ति का संचार होता है।

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   खुजली और फोड़ा-फुंसी को जड़ से मिटाने के लिए मात्र एक ग्लास ही काफी है

खुजली दूर भगाएं

एलर्जी, कुष्ठ तथा सभी प्रकार त्वचा विकारों में भी गिलोय का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। आंत्रशोथ तथा कृमि रोगों में भी गिलोय लाभकारी है। यह तीनों प्रकार के दोषों का नाश भी करती है। घी के साथ यह वातदोष, मिसरी के साथ पित्तदोष तथा शहद के साथ कफ दोष का निवारण करती है। हृदय की दुर्बलता, लो ब्लड प्रेशर तथा विभिन्न रक्त विकारों में यह फायदा पहुंचती है। खुजली अक्‍सर रक्त विकार के कारण होती है। गिलोय के रस पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है। इसके लिए गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए या सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीएं।

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आंखों के लिए फायदेमंद

गिलोय का रस आंवले के रस के साथ मिलाकर लेना आंखों के रोगों के लिए लाभकारी होता है। इसके सेवन से आंखों के रोगों तो दूर होते ही है, साथ ही आंखों की रोशनी भी बढ़ती हैं। इसके लिए गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करें।

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■   एक पत्ता आपकी लीवर, किडनी और हार्ट को 70 साल तक बीमार नहीं होने देगा

विशेष :- थोड़ी सी आयुर्वेद मे श्रद्धा व समर्पण आपका तीन लाख का बजट बचा सकता है बात है जब भी मौसम बदले तो अवश्य लो बच्चों को ऋतु परिवर्तन के समय अवश्य दो -बदलाव के समय विषाणु बहुत बढ़ते हैं बच्चे कभी वाइरल ग्रस्त नहीं होंगे-आपको वाइरल का अंदेशा सा भी हो तो बिना झिझक के दो गोली तीन बार ले लो बुखार या तो मर जाएगा या बड़ा हल्का हो जाएगा-जुकाम मे भी कारगर, कफ भी मिटती है, मोटापे मे भी लाभ, मोटापे मे इसके कडवे पत्ते खाओ, अनेकों रोगों मे लाभ गरीब लोग किसी भी धर्म के हों इसे बड़ी मात्रा मे उगा के रखें, अपने आस पास के पार्कों मे भर दें इतनी गिलोय हो भारत मे की भारत गिलोय निर्याता बने !

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■   चुटकी भर गुग्गुल पानी मे मिलाकर पीने से गठिया, जोड़ो का दर्द, सायटिका, कमर दर्द, मोटापा, लकवा, ट्यूमर और शारीरिक कमजोरी आदि 35 रोगों में रामबाण

बहरेपन का सफल रामबाण इलाज, 7 दिन में वापस पाएं सुनने की शक्ति

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सुनने की शक्ति कम हो जाना इस बीमारी को बहरापन कहते है। लोगो में बहरापन अलग अलग कारणों से होता है। जैसे बढ़ती उम्र के साथ बहरापन हो जाता है, कान की हड्डी का बढ़ जाना, ज्यादा शोर वाली जगह पर काम करना, अधिक मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल और तेज आवाज में गाने सुनना और केंसर के कारण भी बहरापन हो सकता है। आज हम आपको ऐसी औषधि के बारे में बताने जा रहे है जिससे आपका बहरापन दूर किया जा सकता है।

■   बदहजमी और फूड पाइज़निंग का इलाज 10 आसान घरेलू उपाय और नुस्खे

ध्यान रखे

ये औषधि जानकारी देने से पहले हम आपको बता दे ये औषधि सब के लिए नहीं है ये औषधि बहरापन दूर करने के लिए तो सही है पर इसका इस्तेमाल करने से पहले मेडिकल प्रोफेसनल की सलाह जरुर लें।

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जानते है इस चमत्कारी औषधि के बारे में

लहसुन और प्याज के रस से आप आपने बहरेपन का इलाज कर सकते है। बहरेपन को दूर करने के लिए प्याज को गुणकारी और असरदार औषधि माना गया। प्याज में पाया जाने वाला एंटीऑक्सीडेंट(anti oxidants) तेज आवाज जैसे की हवा के दबाव से या धमाके से हुए बहरेपन को ठीक करता।

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एक शोध में माना गया है जिन लोगो की सुनने की शक्ति धमाके के कारण चली गई हो प्याज और पानी के मिश्रण से सुनने की शक्ति में सुधार हुआ है।

जो लोग सुनने की शक्ति खो चुके थे उन्होंने लहसुन को अपने खाने में लेना शुरू किया और उनको बहुत ही अच्छे फायदे मिले। ऐसा माना जाता है के लहसुन सर्दी जुकाम में गुणकारी है, रक्तचाप को नियंत्रित करता है, कोलेष्ट्रोल को कम करता है, और लम्बी आयु प्रदान करता है।

लहसुन कान में खून के बहाव को बढ़ा कर और कान के उस हिस्से को जो आवाज़ को सन्देश में बदलने का काम करता है उसमे केमिकल गतिविधि पैदा करता है उसे दोबारा ठीक कर के कान के सुनने की शक्ति को वापस लाने में मदद करता है।

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■   माइग्रेन के दर्द से छुटकारा पाने के 10 रामबाण घरेलू नुस्खे और उपाय

मिश्रण तैयार करने के लिए सामग्री

लहसुन की 3-4 कलियाँ
एक बड़ा चम्मच जैतून का तेल
15 ml प्याज का रस

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मिश्रण को बनाने की विधि

एक कप में जैतून के तेल को डालकर उसमे लहसुन की कलियों का रस मिला लें। अब दोनों प्याज के रस में मिलकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। एक ड्रापर की मदद से कानो ने 3-4 बूंद डालें। दोनों कानो को रुई से ढक लें।

   गर्दन में दर्द का इलाज के 10 आसान घरेलू उपाय और देसी नुस्खे

भयंकर से भयंकर रोगों से छुटकारा दिलाकर, खोया हुआ स्वास्थ्य एवं यौवन पुनः लौटाएगा पीपल का पेड़

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भारतीय जड़ी बूटियां अपने गुणों में अद्धुत है। इनमें तथा पेड़-पौधों में परमात्मा ने दिव्य शक्तियां भर दी हैं। भारतीय वन संम्पदा के गुणों और रहस्यों को जानकर विश्व आश्चर्य चकित रह जाता है। भारतीय जड़ी बूटियों से मनुष्य का कायाकल्प हो सकता है। खोया हुआ स्वास्थ्य एवं यौवन पुनः लौट सकता है। भयंकर से भयंकर रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है तथा आयु को लम्बा किया जा स्कता है।

■   मुंह की बदबू दूर करने का इलाज 10 आसान उपाय और घरेलू नुस्खे

आवश्यकता है,इनके गुणों का मनन-चिन्तन कर इनके उचित उपयोग की। पीपल के वृक्षों में अनेक औषधीय गुण हैं तथा इसके औषधीय गुणों को बहुत कम लोग जानते हैं। जो गुणी होता है, लोग उसका आदर करते ही हैं। लोग उसे पूजते हैं।
भारत में उपलब्ध विविध वृक्षों में जितना अधिक धार्मिक एवं औषधीय महत्व  पीपल का है, अन्य किसी वृक्ष का नहीं है। यही नहीं पीपल निरंतर दूषित गैसों का विषपान करता रहता है। ठीक वैसे ही जैसे शिव ने विषपान किया था।
पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी वृक्षों में पीपल को प्राणवायु यानी ऑक्सीजन को शुद्ध करने वाले वृक्षों में सर्वोत्तम माना जा सकता है, पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जो चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देता है। जबकि अन्य वृक्ष रात को कार्बन-डाइ-आक्साइड या नाइट्रोजन छोड़ते है।

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इस वृक्ष का सबसे बड़ा उपयोग पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने में किया जा सकता है,क्योंकि यह प्राणवायु प्रदान कर वायुमण्डल को शुद्ध करता है और इसी गुणवत्ता के कारण भारतीय शास्त्रों ने इस वृक्ष को सम्मान दिया। पीपल के जितने ज़्यादा वृक्ष होंगे, वायुमण्डल उतना ही ज़्यादा शुद्ध होगा। पीपल के नीचे ली हुई श्वास ताजगी प्रदान करती है, बुद्धि तेज करती है पीपल के नीचे रहने वाले लोग बुद्धिमान, निरोगी और दीर्घायु होते हैं। गांवों में प्रत्येक घर तथा मन्दिर के पास आपको पीपल या नीम का वृक्ष मिल जायेगा। पीपल पर्यावरण को शुद्ध करता है तथा नीम हमारा गृह चिकित्सक है। नीम से हमारी कितनी ही व्याधियां दूर हो जाती है। आज पर्यावरण को शुद्ध रखना हमारी प्राथमिकता है।

■   हर तरह के घाव जल्दी भरने के 5 आसान उपाय और देसी नुस्खे

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सभी मौसम में पीपल का औषधि रूप समान रहता है। बच्चे से लेकर वृद्धों तक यह सभी के लिए लाभदायक है। आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त विषदाह भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसको धार्मिक महत्व  बनाकर उसको काटने का निषेध किया गया हमारे पूर्वजों की हमारे ऊपर यह विशेष कृपा है। इस प्रकार पीपल अपने धार्मिक औषधि एवं सामाजिक गुणों के कारण सभी के लिए वंदनीय है।

पीपल न केवल एक पूजनीय वृक्ष है बल्कि इसके वृक्ष खाल, तना, पत्ते तथा बीज आयुर्वेद की अनुपम देन भी है। पीपल को निघन्टु शास्त्र ने ऐसी अजर अमर बूटी का नाम दिया है, जिसके सेवन से वात रोग, कफ रोग और पित्त रोग नष्ट होते हैं। संभवतः इतिज मासिक या गर्भाशय संबंधी स्त्री जनित रोगों में पीपल का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। पीपल की लंबी आयु के कारण ही बहुधा इसमें दाढ़ी निकल आती हैं। इस दाढ़ी का आयुर्वेद में शिशु माताजन्य रोग में अद्भुत प्रयोग होता है। पीपल की जड़, शाखाएं, पत्ते, फल, छाल व पत्ते तोड़ने पर डंठल से उत्पन्न स्राव या तने व शाखा से रिसते गोंद की बहुमूल्य उपयोगिता सिद्ध हुई है।पीपल रोगों का विनाश करता है। पीपल के औषधीय गुण का उल्लेख सुश्रुत संहिता, चरक संहिता में किया गया है।

■   ख़राब पाचन शक्ति ठीक करने के 5 आसान घरेलू उपाय और देसी नुस्खे
  • पीपल की छाल को जलाकर राख कर लें, इसे एक कप पानी में घोलकर रख दें, जब राख नीचे बैठ जाए, तब पानी नितारकर पिलाने से हिचकी आना बंद हो जाता है।
  • बताशे में बड़ का दूध मिलाकर पीने से पुरूषों के यौन रोग दूर होते हैं तथा उसकी यौनशक्ति तथा शारीरिक शक्ति बढ़ती है।
  • पीपल फेफड़ों के रोग जैसे तपेदिक, अस्थमा, खांसी तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसके अलावा रतौंधि, मलेरिया ज्वर, कान दर्द या बहरापन, खांसी, बांझपन, महिने की गड़बड़ी, सर्दी सरदर्द सभी में पीपल औषधि के रूप में प्रयोग होता है।

sirdard Headache

  • यदि किसी के घाव दवाईयां लेने के बाद भी नहीं भर रहा हो तो इससे पीपल की छाल को पीसकर रोटी के साथ खाना चाहिए। इससे घाव के कीड़े मर जाते हैं और घाव जल्दी भर जाता है
  • पीपल का वृक्ष रक्तपित्त और कफ के रोगों को दूर करने वाला होता है। पीपल की छाया बहुत शीतल और सुखद होती है। इसके पत्ते कोमल, चिकने और हरे रंग के होते हैं जो आंखों को बहुत सुहावने लगते हैं।
  • औषधि के रूप में इसके पत्र, त्वक्, फल, बीज और दुग्ध व लकड़ी आदि इसका प्रत्येक अंग और अंश हितकारी लाभकारी और गुणकारी होता है। सांप और बिच्छु का विष उतारने में पीपल की लकडिय़ों का प्रयोग होता है।
■   चेहरे की चर्बी कैसे कम करे 5 आसान उपाय
  • बहुत से लोगों को रात में दिखाई नहीं पड़ता। शाम का झुट-पुट फैलते ही आंखों के आगे अंधियारा सा छा जाता है। इसकी सहज औषधि है पीपल। पीपल की लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर गोमूत्र के साथ उसे शिला पर पीसें। इसका अंजन दो-चार दिन आंखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है। उपचार के लिए इसके उपयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ की सलाह ज़रूर लें।
  • कुछ बच्चे तथा बड़े लोग भी शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते, उन्हें हकलाने या तुतलाने की बीमारी हो जाती है। ऎसी स्थिति में उन्हें पीपल के पके फलों का सेवन कराना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में उनकी हकलाहट तथा तुतलाहट खत्म हो जाती है।इसके अलावा रोज एक अनार खाने से भी हकलाने, तुतलाने तथा जबान के अन्य दोष दूर होते हैं।

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  • पीपल को सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय माना जा सकता है। किसी भी रोग में पीपल के उपयोग से पूर्व किसी आयुर्वेदाचार्य या विशेषज्ञ से सलाह के बाद ही इसका उपयोग करें।
  • पीपल वृक्ष के पके हुए फल हृदय रोगों को शीतलता और शांति देने वाले होते हैं। इसके साथ ही पित्त, रक्त और कफ के दोष को दूर करने वाले गुण भी इनमें निहित हैं। दाह, वमन, शोथ, अरूचि आदि रोगों में यह रामबाण है।
  • पीलिया के रोगी को पीपल की नर्म टहनी (जो की पेंसिल जैसी पतली हो) के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर माला बना लें। यह माला पीलिया रोग के रोगी को एक सप्ताह धारण करवाने से पीलिया नष्ट हो जाता है।
  • पीपल का फल पाचक, आनुलोमिक, संकोच, विकास-प्रतिबंधक और रक्त शोषक है।

अफीम के जहर तथा नशे को उतारने के लिए पीपल की छाल का काढ़ा पिलाना चाहिए। इस उपाय से तुरंत ही अफीम का सारा बुरा असर खत्म हो जाता है

■   जलने और चोट के निशान हटाने के 10 आसान उपाय और नुस्खे
  • पीपल की टहनी का दातुन कई दिनों तक करने से तथा उसको चूसने से मलेरिया बुखार उतर जाता है।

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  • पीपल के सूखे फल दमे के रोग को दूर करने में काफ़ी लाभकारी साबित हुआ है।
  • पीपल का दातुन मुंह की दुर्गंध को दूर करता है और साथ ही साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
  • पीपल की टहनियों में से दातुन बना लें। प्रतिदिन पीपल का दातुन करने से लाभ होता है। यदि आप पित्त प्रकृति के हैं तो यह दातुन आपको विशेषकर लाभकारी होगा। पीपल के दातुन से दांतों के रोगों जैसे दांतों में कीड़ा लगना, मसूड़ों में सूजन, पीप या ख़ून निकलना, दांतों के पीलापन, दांत हिलना आदि में लाभ देता है।
  • पीपल का दूध (क्षीर) अति शीघ्र रक्तशोधक, वेदनानाशक, शोषहर होता है। दूध का रंग सफ़ेद होता है। पीपल का दूध आंखों के अनेक रोगों को दूर करता है। पीपल के पत्ते या टहनी तोड़ने से जो दूध निकलता है उसे थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन सलाई से लगाने पर आँखों के रोग जैसे पानी आना, मल बहना, फोला, आंखों में दर्द और आंखों की लाली आदि रोगों में आराम मिलता है।

पीपल के 4-5 कोमल, नरम पत्ते खूब चबा-चबाकर खाने से, इसकी छाल का काढ़ा बनाकर आधा कप मात्रा में पीने से दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोगों में आराम होता है। इसके पत्तों को जलाकर राख कर लें, यह राख घावों पर बुरकने से घाव ठीक हो जाते हैं।

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■   तनाव दूर करने के 10 आसान तरीके 
  • इसकी छाल का रस या दूध लगाने से पैरों की बिवाई ठीक हो जाती है।
  • महिलाओं में बांझपन को दूर करने और सन्तानोत्पत्ति में इसके फलों का सफल प्रयोग किया गया है।
  • सर्दी के सिरदर्द के लिए सिर्फ़ पीपल की दो-चार कोमल पत्तियों को चूसें। दो-तीन बार ऎसा करने से सर्दी जुकाम में लाभ होना संभव है।
  • पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है। सुजाक में पीपल की छाल का उपयोग किया जाता है। इसके छाल के अंदर फोड़ों को पकाने के तत्व भी होते हैं। इसकी छाल के शीत निर्यास का इस्तेमाल गीली खुजली को दूर करने में भी किया जाता है।
  • पीपल के सूखे पत्ते को खूब कूटें। जब पाउडर सा बन जाए, तब उसे कपड़े से छान लें। लगभग 5 ग्राम चूर्ण को दो चम्मच मधु मिलाकर एक महीना सुबह चाटने से दमा और खांसी में लाभ होता है।

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  • पीपल की छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है। इसकी ताजा जलाई हुई छाल की राख को पानी में घोलकर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी रूक जाती है। इसके छाल का चूर्ण भगन्दर रोग को भगाने में किया जाता है।
  • श्रीलंका में तो इसके छाल का रस दांत मसूड़ों के दर्द को दूर करने में कुल्ले के रूप में किया जाता है।
■   पेशाब में रुकावट का इलाज और रुक रुक कर आने के 10 उपाय इन हिंदी
  • खांसी के रोग में पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट- छानकर समान भागकर मिसरी मिला लें तथा कीकर का गोंद मिलाकर चने के आकार समान गोली बना ले। दिनभर में दो से तीन गोलियां कुछ दिनों तक चूसें, खांसी में आराम मिलेगा।
  • यूनानी मत में पीपल की छाल को कब्ज करने वाली माना गया है। इसकी ताजा छाल को जल में भिगोकर कमर में बांघने से ताकत आती है।

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  • पीपल के पत्ते आनुलोमिक होते हैं। पीपल के पत्तों को गर्म करके सूजन पर बाधने से कुछ ही दिनों में सूजन उतर आता है।
  • यूनानी चिकित्सा में इसके छाल को वीर्य वर्धक माना गया है। इसका अर्क ख़ून को साफ़ करता है। इसकी छाल का क्वाथ पीने से पेशाब की जलन, पुराना सुजाक और हडडी की जलन मिटने की बात कही गयी है।
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  • पीपल की ताजी हरी पत्तियों को निचोड़कर उसका रस कान में डालने से कान दर्द दूर होता है। कुछ समय तक इसके नियमित सेवन से कान का बहरापन भी जाता रहता है।
  • मसूड़ों की सूजन दूर करने के लिए इसकी छाल के काढ़े से कुल्ले करें।

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  • पीपल की अन्तरछाल (छाल के अन्दर का भाग) निकालकर सुखा लें और कूट-पीसकर खूब महीन चूर्ण कर लें, यह चूर्ण दमा रोगी को देने से दमा में आराम मिलता है। पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर उसमें यह चूर्ण बुरककर खीर को 4-5 घंटे चन्द्रमा की किरणों में रखें, इससे खीर में ऐसे औषधीय तत्व आ जाते हैं कि दमा रोगी को बहुत आराम मिलता है। इसके सेवन का समय पूर्णिमा की रात को माना जाता है।

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■   दस्त रोकने और पेट की मरोड़ का इलाज के 10 आसान उपाय

स्किन प्रॉब्लम से छुटकारा दिलाकर शरीर की सफाई करता है एलोवेरा, अन्य फायदे भी हैं चौकाने वाले

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एलोवेरा आपकी स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है ये सब जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये जोड़ों के दर्द में भी राहत देता है। एलोवेरा का ग्वारपाठा, घृत कुमारी, गिलोय भी कहा जाता है। स्किन प्रोब्लम से छुटकारा दिलाने के अलावा एलोवेरा आपकी सेहत के लिए भी गुणकारी है।

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शरीर की सफाई

चम्मच ताजे एलोवेरा ज्यूस में 1 गिलास पानी मिलाकर पीएं। इससे आपके शरीर में से सभी विषाक्त पदार्थ निकल जाएंगे और बॉडी क्लीन रहेगी। रोज सुबह पानी के साथ एलोवेरा ज्यूस की दो चम्मच लें।

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आंखों में जलन

अक्सर लगातार कंप्यूटर सामने बैठे रहने, टीवी देखने या नींद ना पूरी होने से आंखों में जलन की समस्या पैदा हो जाती है। ऎसे में 2 चम्मच एलो जेल को एक कप पानी में मिलाएं और इससे आंखों को धो लें। इससे आंखों की जलन कम होने लगेगी और आंखों को आराम मिलेगा।

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दांतों की केयर

एलोवेरा डेंटल केयर का भी स्त्रोत है। एलोवेरा जूस  से मुंह साफ करने से ताजगी रहते है। साथ ही दांतों में होने वाली प्रोब्ल्म्स जैसे कैविटी, दाग-धब्बे आदि भी दूर होते हैं। साथ ही ताजे एलो जेल को मसूड़ों पर लगाने से दर्द से राहत मिलती है।

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■   शहनाज हुसैन के ब्यूटी टिप्स और 5 घरेलु उपाय

पिंपल्स और सन टैन करे दूर

एलोवेरा का जूस  आपकी स्किन के लिए बहुत फायदेमंद है। यह पिंपल्स और उसके दागों को दूर करता है और बैक्टिरिया को मारता है। इसके अलावा अगर आपको सन टैन की समस्या है तो रोज ताजा एलो जेल लगाइए, इससे आपको तुरंत असर दिखने लगेगा।

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जोड़ों का दर्द

एलोवेरा जेल को मसल्स और जोड़ों के दर्द पर लगाने से इसमें राहत मिलती है। ध्यान रहें ये जेल ताजे एलोवेरा का बना हो। इसलिए अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं और दवाइयां लेने पर भी कोई असर नहीं हो रहा है तो एलोवेरा का इस्तेमाल करें।

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साइनस

सर्दियों के मौसम में साइनस की समस्या बढ़ जाती है। ऎसे में दवाई खाने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं रह जाता है, लेकिन एलोवेरा की सहायता से आप प्राकृतिक रूप से इसे कंट्रोल कर सकते हैं। एलोवेरा में मैग्नीशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

साइनस(Sinus)का घरेलू उपचार

■   हर तरह के घाव जल्दी भरने के 5 आसान उपाय और देसी नुस्खे

जख्म भरे

एलोवेरा कट जाने, घावों और कीड़े के काटने पर होने वाली जलन को भी कम करता है। घाव पर एलोवेरा जेल लगाने से स्किन की रेडनैस कम होती है और घाव में राहत मिलती है।

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ghav ka ilaj wound treatment in hindi

मोटापा

अगर आप एक्सरसाइज करके और डाइट पर रहकर थक चुके हैं, लेकिन मोटापे पर कुछ असर नहीं पड़ रहा है तो एलोवेरा प्राकृतिक रूप से वजन कम करने में आपकी मदद करेगा। एक गिलास एलोवेरा जूस  से मोटाबोलिज्म रेट स्थिर रहती है जो मोटापा बर्न करने में मदद करती है।

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डैंड्रफ

बालों के लिए भी एलोवेरा बहुत अच्छा है। यह डैंड्रफ की छुट्टी कर देता है और जड़ों को मजबूत बनाता है। 2 चम्मच ताजा एलो जेल आपके कडिशनर में मिला कर लगा ए। इससे आपके बाल सॉफ्ट और चमकदार हो जाएंगे।

Dandruff_

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दाढ़ी के बालों को घना और काला बनाने का अचूक रामबाण उपाय, 7 दिन में पाएं निश्चित लाभ

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white beard

खुद को मेच्‍योर दिखाने के लिये हर युवक की यह कामना होती है उसकी दाढ़ी बढ जाये। मगर कभी कभी हारमोन की कमी के कारण ऐसा नहीं हो पाता। किसी किसी की दाढ़ी तेजी से बढ़ती है तो किसी की बिल्‍कुल ही नहीं बढ़ती, और किसी की बढ़ती भी है तो चेहरे के कुछ ही भाग पर। सामान्‍य रूप से दाढ़ी बढ़ाने के लिये युवक एक ही नुस्‍खा अपनाते हैं और वह है शेविंग। शेविंग जैसे नुस्‍खे अपना कर युवा वर्ग एक हद तक इस समस्‍या से निजात तो पा जाते हैं मगर चेहरे के अलग अलग हिस्‍सों की दाढ़ी जैसी समस्‍या से निजात नहीं मिल पाती। तो आईए आपको सामान्‍य रूप से दाढ़ी बढा़ने के कुछ नुस्‍खों के बारे में बताते हैं-

■   सिर्फ 7 दिन छुहारा खाने के बाद ऐसे परिणाम मिलेंगे कि आप हैरान रह जायेंगे
  • ज्यादा प्रोटीन वाले भोजन खाना दाढ़ी को तेजी से बढ़ने में मदद कर सकता है। क्‍योंकि प्रोटीन शरीर को ऐसे पौष्टिक तत्व उपलब्ध कराता है जो ज्यादा बालों को उगाता है। इसलिए अपने आहार में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाएं। प्रोटीन मांस, मछली, अंडों और नट्स में सबसे ज्‍यादा पाया जाता है। अपने आहार और ब्यूटी प्रोडक्ट में विटामिन बी को शामिल करें। विटामिन बी1, बी6 और बी12 भी बालों को जल्दी बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही नियमित रूप से बायोटीन का सेवन करें। यह भी बालों और नाखूनों को तेजी से बढ़ाने में बहुत मददगार होता है।

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  • प्राकृतिक रूप से घनी दाढ़ी पाने के लिये शेविंग एक अच्‍छा उपाय है। अगर आपके दाढी के बालों का विकास धीमी रफ्तार से हो रहा है तो बेहतर होगा कि एक सप्‍ताह में तीन बार शेविंग करें।

घनी दाढ़ी के उपाय ghani dadhi ke upay aur nuskhe in hindi

  • दालचीनी के पाउडर में नीबू का रस मिलाकर पेस्‍ट तैयार कर लें। इसे चेहरे पर लगाये और 15 मिनट के लिये छोड़ दें। फिर ठंडे पानी से चेहरा साफ कर सूती कपड़े से पोछ लें। ऐसा करने से आपके चेहरे की मासूमियत और नमी बनी रहेगी। हफ्ते में दो बार करने से घनी दाढ़ी और मासूमियत दोनों आसनी से पाया जा सकता है।
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  • उल्‍टी दिशा में शेविंग करना ज्‍यादा असरदार होगा। इस तरह शेविंग करने से आपके बाल की विकास भी तेजी से होगी और आप जल्‍दी घनी दाढ़ी भी पा सकेंगे।

•    आंवले की तेल के साथ सरसो की पत्‍ती को मिलाकर भी मसाज किया जा सकता है। इसके लिये पहले आप सरसो की पत्‍ती का पेस्‍ट बना लें और फिर उसमें एकाद बूंद आंवला तेल मिक्‍स करें। इसके बाद उस पेस्‍ट को दाढ़ी वाले हिस्‍से पर लगायें और 20 मिनट के लिये छोड़ दें। ठंडे पानी से चेहरे को धुल कर उसे साफ कपड़े से साफ करें। ऐसा सप्‍ताह में 3 या 4 बार करने से आप घनी दाढी पा सकते हैं।

  • अच्‍छा होगा कि आप उपर से नीचे की तरफ या फिर दायें से बायें तरफ शेविंग करें। मगर इस तरह की तकनीक अपनाने से पहले सावधान रहें क्‍योंकि रेजर से आपके स्किन कट भी सकती है।

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  • चेहरे की बाल को बढ़ाने के लिये आंवले का तेल से चेहरे की मालिश करना एक अच्‍छा विकल्‍प है। आंवले की तेल से रोजाना अपने चेहरे की 20 मिनट तक मसाज करें और फिर उसे ठंडे पानी से धुल लें।

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  • शेविंग के अलावा ट्रिमिंग के जरिये भी आप घनी दाढ़ी पा सकते हैं। ट्रिमिंग से आपको अनचाहें बालों से छुटकारा भी मिल जायेगा और आप के बालों की विकास भी तेजी से होगी।
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उपवास यानि व्रत आज कल लोगों ने इसको अंध श्रद्धा का नाम दे दिया है। मगर ये भारतीय संस्कृति में स्वस्थ रहने की अनूठी प्रक्रिया है। आप इसको अपने जीवन का हिस्सा बना कर अपने शरीर का कायाकल्प कर सकते हैं और अनेकों स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आपको भूखा रख कर भगवान को कोई ख़ुशी नहीं होगी, अगर कुछ होगा तो वो ये के आपका स्वास्थ्य बेहतर से और बेहतर होता चला जायेगा। आइये समझें उपवास के पीछे के रहस्य को।

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आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘चरक संहिता’ से लेकर आज के विभिन्न चिकित्सीय शोधों ने भी उपवास के अनेक लाभ बताए हैं।
उपवास से पाचनतंत्र दुरूस्त रहता है जिससे शरीर में उपस्थित विषाक्त पदार्थों का निष्कासन आसानी से हो जाता है।
हर सप्ताह उपवास रखने से कोलेस्ट्राल की मात्रा घटने लगती है जो धमनियों के लिए लाभदायक है।

हो चुके हैं ढेरों शोध

ये बात अभी अनेक यूनिवर्सिटी में शोध की जा चुकी है के जो लोग सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार उपवास करते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कहीं अधिक होती है। ऐसा क्या होता है उपवास करने से। दरअसल हमारा शरीर अपने अंदर सब कुछ समा लेता है। इसकी नस नाड़ियों में गंदगी जमी रहती है, ये कहीं और से नहीं आती, बल्कि ये हमारे द्वारा ग्रहण किये गए भोजन के अवशिष्ट  पदार्थ हैं, जो अच्छे से हमारे शरीर से निकल नहीं पाते और हमारी अनेक बिमारियों का कारण बनते हैं, ये बीमारियां गैस बनना से लेकर कैंसर तक हो सकती हैं।

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उपवास से स्वास्थ्य कनेक्शन

जब हम व्रत करते हैं तो हमारा शरीर नया भोजन ग्रहण नहीं करता, इस समय ये सिर्फ सफाई करता है। जिस प्रकार घर की सफाई में पानी का विशिष्ट स्थान है उसी प्रकार से शारीर की सफाई वाले दिन सिर्फ पानी पीना चाहिए, एनर्जी के लिए पानी में निम्बू और शहद दोनों मिला कर पिएं। व्रत करने से हमारी गंदगी निकल कर शरीर का पुनः कायाकल्प हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति महीने में तीन दिन तक लगातार व्रत करे तो उसका शरीर चन्दन सा निखर जायेगा और कोई रोग भी नहीं होगा।

आज कल व्रत के नाम पर महिलाएं व्रत में खाया जाने वाला नमकीन और पता नहीं क्या क्या खातीं हैं, ऐसे में उनको स्वास्थ्य की क्या प्राप्ति होगी।

शरीर देता है संकेत

हमारा शरीर खुद कभी कभी कुछ ना खाने के लिए हमको प्रेरित करता है, ऐसे में हम सोचते हैं के शायद घर का खान खा खा कर हम बोर हो चुके हैं तो आज बाहर का और मसालेदार खाकर अपने मन को सही किया जाए। ऐसा करके हम अपने शरीर को और नुक्सान पहुंचाते हैं। जबकि जिस दिन हमारा कुछ भी खाने को मन ना करे तो उस दिन सिर्फ गर्म पानी में निम्बू और शहद मिला कर पिएं। इस से आपको एनर्जी भी मिलेगी और आपके शरीर की गंदगी भी साफ़ होगी।

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आपने ये गौर किया होगा, जिस रात आपने भोजन ना किया हो उस के अगली सुबह जब आपने मल त्याग किया होगा वो अन्य दिनों के मुकाबले अधिक कठोर होगा। ऐसा क्यों हुआ, दरअसल हमारी पाचन प्रक्रिया उस समय बेहतर काम करती है जब हमारा पेट खाली हो। इसलिए हमारे भोजन में कम से कम 5 से 8 घंटे का अंतराल होना चाहिए।

भोजन करने का नियम

पहले लोग मेहनत करते थे, तो वो भी सिर्फ २ समय ही खाना खाते थे, मगर आज कल बिना किसी शरीरी परिश्रम के लोग तीन तीन समय खाना खाते हैं। रात को खाया और सो गए, सुबह उठे, मल त्याग किया फिर खा लिया, अरे भाई ऐसा क्या काम कर दिया जिससे आपको दोबारा भोजन करना पड़ा। पाचन प्रक्रिया को कोई आराम नहीं। यही कारण है हमारी अनेक बिमारियों का। इसके लिए एक कहावत है के योगी खाये एक बार, भोगी खाये दो बार और रोगी खाये बार बार। अभी आप देखें के आप किस स्थिति में हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे अधिक हिन्दू सैनिक क्यों बचे ?

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मित्रराष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी में से मात्र 210 व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते में ही मर गये।

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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात् 186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः ‘वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके रक्त में तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।’

हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी। सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है।

कैसे बन व्रत रखने का चक्र

यहां एक बात और बहुत महत्वपूर्ण है कि किसी भी हाल में जबर्दस्ती न किया जाए। अगर आप शरीर के प्राकृतिक चक्र पर गौर करेंगे कि हर 40 से 48 दिनों में शरीर एक खास चक्र से गुजरता है।

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11 से 14 दिनों में एक दिन ऐसा भी आता है, जब आपका कुछ भी खाने का मन नहीं करेगा। उस दिन आपको नहीं खाना चाहिए। हर चक्र में तीन दिन ऐसे होते हैं जिनमें आपके शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती। अगर आप अपने शरीर को लेकर सजग हो जाएंगे तो आपको खुद भी इस बात का अहसास हो जाएगा कि इन दिनों में शरीर को भोजन की जरूरत नहीं होती। इनमें से किसी भी एक दिन आप बिना भोजन के आराम से रह सकते हैं।

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आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कुत्ते और बिल्लियों के अंदर भी इतनी सजगता होती है। कभी गौर से देखें, किसी खास दिन वे कुछ भी नहीं खाते। दरअसल, अपने सिस्टम के प्रति वे पूरी तरह सजग होते हैं। जिस दिन सिस्टम कहता है कि आज खाना नहीं चाहिए, वह दिन उनके लिए शरीर की सफाई का दिन बन जाता है और उस दिन वे कुछ भी नहीं खाते। अब आपके भीतर तो इतनी जागरूकता नहीं कि आप उन खास दिनों को पहचान सकें। फिर क्या किया जाए ! बस इस समस्या के समाधान के लिए अपने यहां एकादशी का दिन तय कर दिया गया। हिंदी महीनों के हिसाब से देखें तो हर 14 दिनों में एक बार एकादशी आती है। इसका मतलब हुआ कि हर 14 दिनों में आप एक दिन बिना खाए रह सकते हैं। अगर आप बिना कुछ खाए रह ही नहीं सकते या आपका कामकाज ऐसा है, जिसके चलते भूखा रहना तुम्हारे वश में नहीं और भूखे रहने के लिए जिस साधना की जरूरत होती है, वह भी आपके पास नहीं है, तो आप हल्का फलाहार ले सकते हैं। कुल मिलाकर बात इतनी है कि बस अपने सिस्टम के प्रति जागरूक हो जाएं और यह देखने की कोशिश करें कि कुछ दिन ऐसे हैं, जिनमें आपको खाने की आवश्यकता महसूस नहीं होती। इन दिनों जबर्दस्ती खाना अच्छी बात नहीं है।

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ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को होते हैं ये अनगिनत लाभ, जानेंगे तो दंग रह जायेंगे

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भारतीय परंपरा में सुबह जल्दी उठने की महिमा गायी हुयी हैं। इसको अमृत वेला, ब्रह्म मुहूर्त जैसे नामो से इसको सुशोभित भी किया गया हैं। रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने से स्वास्थ्य की रक्षा तो होती ही हैं इसके साथ मानसिक शान्ति और संतुलन भी बना रहता हैं। आइये जाने सुबह जल्दी उठने के लिए क्यों कहा हैं आयुर्वेद में।

■   जल्दी पतला होने और पेट अन्दर करने की आयुर्वेदिक दवा

एक कहावत हैं-

“तीन बजे जागे सुयोगी, चार बजे जागे सुसंत।
पांच बजे जागे सो महात्मा, छः बजे जागे सो भगत।
बाकी सब ठगत।।”

ऋग्वेद में कहा गया हैं “प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति” अर्थात ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति रत्नो को धारण करता हैं।

इंग्लिश  (आंग्ल) भाषा में भी एक कहावत भी हैं “अर्ली तो बेड, एंड अर्ली तो राइज, मेकस अ मैन हेल्दी वेल्दी एंड वाइज”।

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■   अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने से जीवन मे कभी नही होगा हार्ट ब्लॉकेज, गठिया, जोड़ो का दर्द, कैंसर, एलर्जी, ब्लडप्रेशर आदि 100 रोग, जरूर अपनाएँ

सवेरे जल्दी उठने के निरंतर अभ्यास से व्यक्ति रोग एवं जरा (बुढ़ापे) से मुक्त होकर तथा रसायनवत लाभ प्राप्त करता हुआ शतायु होता हैं। ब्रह्म मुहूर्त में तम एवं रजोगुण की मात्रा बहुत कम होती हैं तथा सत्वगुण का प्राधान्य होता हैं, इसलिए इस काल में मानसिक वृतिया भी सात्विक और शांत हो जाती हैं।

brahma muhurta

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अध्ययन करने वाले विद्यार्थी अधिक मेधावी स्वस्थ चैतन्य एवं नवजीवन से परिपूर्ण होते हैं। माता पिता को चाहिए के बच्चो को टी वी देखने इत्यादि किसी भी कारण से देर रात तक जागने से रोका जाये। यदि माता पिता स्वयं रात्रि में जल्दी सोते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते हैं तो निश्चित ही बच्चो पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और वे भी उनका अनुसरण करेंगे।

आयुर्वेद के अनुसार प्रात: काल की वायु में अमृत कण विद्यमान  रहते हैं। रात्रि में चन्द्रमा की किरणों के साथ जो अमृत बरसता हैं, प्रात: काल की वायु उसी अमृत को साथ लेकर मंद मंद बहती हैं। यह वायु “वीरवायु” कहलाती हैं। जब यही अमृतमयी वायु हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं, तब हमारे शरीर में तेज़ ओज बल शक्ति स्फूर्ति एवं मेधा का संचार होता हैं , चेहरे पर दीप्ती आने लगती हैं। चित की प्रफुल्लता बढ़ती हैं तथा शरीर उत्तरोत्तर स्वस्थ सबल बनता हैं रक्त की शुद्धि होती हैं। इसके विपरीत देर रात तक जागने से और देर सुबह तक सोने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का नुक्सान होता हैं।

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क्या हैं ब्रह्म मुहूर्त

रत्नावली नामक ग्रन्थ में रात्रि के अंतिम याम को, सकन्द पुराण में रात्रि के अंतिम आधे याम को ब्रह्म मुहूर्त कहा गया हैं।

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण

अवार्चीन चिकित्सा अनुसंधानों के अनुसार प्रात: काल तीन बजे से पांच बजे पियूष (पिट्यूटरी) तथा पिनियल ग्रंथियों से अंत: स्त्राव विशेष स्त्रावित होते हैं, जिनका हमारे शरीर पर अमृत के जैसा ही प्रभाव रहता हैं। ये अंत: स्त्राव शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता का अभिवर्धन करते हैं तथा स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाले होते हैं।

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