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इससे आपका BP से लेकर शुगर तक नार्मल हो जायेगा ! शरीर के सभी रोगों का एक इलाज

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भोजन पकाने का सबसे अच्छा पात्र है मिटटी की हांड़ी और उसके बाद जो अच्छी मेटल आती है वो है कांसा और तीसरा अच्छा माना जाता है वो है पीतल. फिर कांसे और पीतल के बर्तनों में पकाई गयी दाल पे रिसर्च की गयी तो पाया उसके सिर्फ 3% माइक्रोन्यूट्रीयंट्स कम होते है बाकी 97% ऐसे ही रहते हैं. पीतल के भगोने में पकाएं तो सिर्फ 7% ही कम होते हैं 93% ऐसे ही रहते हैं. लेकिन प्रेशर कुकर में जो भोजन पकेगा उसमें सिर्फ 7% ही बाकि बचते हैं.

अब आप तय कर लीजिये अगर आपको लाइफ में क्वालिटी चाहिए तो अपक मिटटी की हांड़ी की तरफ ही जाना पड़ेगा. अगर आप चाहत हैं कि आप जो खा रहे हैं वो शरीर में पोषकता दे तो आपको मिटटी की हांड़ी की और ही जाना पड़ेगा. माने इंडिया से भारत की और वापिस लौटना पड़ेगा. अभी हम अंग्रेजों के द्वारा बनाये गये इंडिया में है इस इंडिया से निकल कर भारत की यात्रा करनी पड़ेगी.

और जब ये बात गाँव गाँव में बतानी शुरू की है तो गाँव में कुम्हारों की इज्जत बढ़ गयी है लोगों को लगता है कि कुम्हार हमारे लिए बहुत बड़ा काम कर रहें हैं. भले वो मिटटी के बर्तन बना रहे हैं लेकिन बहुत बड़ा वैज्ञानिक कार्य वो कर रहे है. वो किसी भी पंडित से कम नही है. और मजे की बात तो ये है कि वो आप को हांड़ी बनाकर सिर्फ 20-25 रुपये में ही दे रहे हैं प्रेशर कुकर तो फिर भी 250 रूपए में आता है. और सबसे बड़ी बात जब यह हांड़ी खत्म हो जाएगी तो ये हांड़ी फिर मिटटी में मिल जाएगी और फिर वोही मिटटी से हांड़ी बन जाएगी. दुनिया में कोई ऐसी वास्तु नही है. हांड़ी बायोडीग्रेडेबल है लेकिनं कुकर नही है. तो आप कोशिश करें अपने घर में हांड़ी ले आयें.

राजीव जी के पास कुछ पेशेंट आए कि उनको ये उनको वो वगैरह वगैरह बिमारियां है, तो उन्होंने उन्हें दवा देने साफ़ इंकार कर दिया उन्होंने कहा कि आप मिटटी की हांड़ी से बनी हुयी दाल खाना शुरू कीजिये. चावल खाना है तो मिटटी की हांड़ी का बना हुआ खाना. अगर आप नही करोगे तो चाहे अमेरिका जाओ, कनाडा जाओ, जर्मिनी जाओ लाखों पैसे खर्च करके आ जाओ कोई फायदा नही, अंत में आपको यही करना पड़ेगा.

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वो कहते है कि उनके पास डाईबिटिज के कोरोनिक पेशेंट हैं जिनका शुगर यूनिट 480 से ऊपर है और ऐसे 100 से ज्यादा पेशेंट हैं तो उनको कहा गया कि मिटटी का बर्तन ले आओ और उसे उपयोग करना शुरू कर दो वो 8 महीने नियमित रूप से मिटटी की दाल, मिटटी की हांड़ी से बने चावल और खिचड़ी खा रहे हैं. और अब तो रोटी बनाने के लिए घर में मिटटी का तवा भी ले आए. मिटटी के तवे पर बाजरे की रोटी बहुत अच्छी बनती है. तो 8 महीने बाद सब मरीजो का शुगर टेस्ट किया, जिस पेशेंट का शुगर लेवल 480 यूनिट था आज उसका शुगर लेवल 180 यूनिट है. वो भी बिना किसी इंजेक्शन के, बिना किसी टॉनिक के और होमोपेथिक के.

तब ये सब मान गये कि वागभट्ट सच में बहुत महँ आदमी थे जिन्होंने मिटटी की हांड़ी के बारे में यह सूत्र लिखा. वो एक सूत्र लिख गये कि कोई भी ऐसा भोजन न करें जिसको बनाते वक्त न तो सूर्य का प्रकाश और न ही पवन का स्पर्श हो. आज की भाषा में कहें तो प्रेशर कुकर में भोजन न करें क्यूंकि उसमें न तो सूर्य का प्रकाश है और न ही पवन का स्पर्श.

कुकर एल्युमीनियम से बनता है और हजारों साल पहले हम भी एल्युमीनियम बना सकते थे क्यूंकि वह बॉक्साइट से बनता है और हिंदुस्तान में बॉक्साइट के खजाने भरे पड़े हैं. कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश सभी जगह बॉक्साइट के बहुत बड़े भंडार हैं. बॉक्साइट है तो एल्युमीनियम बनाना कोई मुश्किल काम नही है. लेकिन हमने नही बनाया क्यूंकि उसकी जरुरत नही थी.

हमने बनाई मिटटी की हांड़ी और उसी पर सारे एक्सपेरिमेंट और रिसर्च किये. इसी लिए कुम्हारों की एक बहुत बड़ी जमात इस देश में खड़ी की गई कि उनको ही मिटटी के बर्तन बनाने हैं. अब ये कुम्हार जो हैं ये इस देश के इतने बड़े वैज्ञानिक हैं, जो मिटटी के बर्तन बनाकर हजारों साल से हमें दे रहे है, हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए और हमने उनको नीची जाति का बना दिया. हम कैसे मुर्ख लोग है.

अगर प्रेशर कुकर की कंपनी जो कुकर बना रही है वो इतना ऊँचा आदमीं है तो ये कुम्हार निचा कैसे हो गया. ये ऊँच-नीच की जो भावना हम लोगों ने इस देश में डाल दी है उसने इस देश का सत्य नाश कर दिया. ये ऊँचा नीचा पहले अंग्रेजों ने डाला और उनसे पहले मुसलमानों ने डाला और मुसलमान और अंग्रेजों के जाने के बाद हम काले अंग्रेजों ने इसे ऐसा पक्का बना दिया कि कुम्हार इस देश में बैकवर्ड क्लास है. जो इस इस देश में सबसे बड़ा वैज्ञानिक काम कर रहा है, मिटटी के बर्तन बना बना के आपके माइक्रोन्यूट्रीयंट्स और सूक्ष्म तत्वों को कम नही होने देने के लिए मिटटी का सिलेकसन करता है.

आपको मालूम होना चाहिए कि हरेक मिटटी से बर्तन नही बनते एक खास तरह की मिटटी होती है जो मिटटी बनाए में काम आती है, और एक और खास तरह की मिटटी होती है जिसमें हांड़ी बनती है और दूसरी तरह की में कुल्हड़ बनता है, तीसरे खास तरह की मिटटी में कुछ और बनता है. मिटटी को पहचानना कि इसमें कैल्शियम इतना है इसमें मैग्नीशियम इतना है इसलिए हांड़ी इससे बनाओ और इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम इतना है इसमें कुल्हड़ बनाओ, ये बहुत बारीक़ और विज्ञानं का काम है. ये सब कुम्हार हजारों सालों से कर रहे है, बिना किसी यूनिवर्सिटी में पढ़े कर रहे हैं, तो हमें तो उनके सामने नतमस्तक होना चाहिए वंदन करना चाहिए कि कितने महान लोग हैं. दुर्भाग्य से सरकार की केटेगरी में वो बैकवार्ड की केटेगरी में आते हैं.

तो मिटटी की बात यहाँ इसलिए बताई गयी क्यूंकि इससे बने बर्तन में माइक्रोन्यूट्रीयंट्स का सबकुछ सामान्य रहता है. इसलिए हमारे यहाँ एलुमिनियम के बर्तन का चलन कम है, भगवान के लिए तो बनाते नही धातुओं के बर्तन में खाना नही बनता, सभी मंदिरों में प्रसाद ज्यादातर मिटटी के बर्तन में ही दिया जाता है.

तो आप भी प्रेशर कुकर निकालिए और मिटटी की हांड़ी ले आइये, अब आप कहेंगे की डाल देर में पकेगी लेकिन सिद्धांत ही यही है पकने का तो, जो खेत में देर में पकी है वो घर में भी देर में पकेगी. अब आपको टाइम मैनेजमेंट ही करना है तो आप दाल को मिटटी की हांड़ी में चढ़ा दीजिये और फिर बाकि काम करते रहिये, घंटे दो घंटे में दाल पाक जाएगी. आपके अन्य काम भी हो जायेगें और दाल भी पाक जाएगी फिर दाल को उतार लीजिये और खा लीजिये.

तो वागभट्ट जी के सूत्र के अनुसार खाना ऐसे बर्तन में पकाएं जिसमें सूर्य का प्रकाश भी अंदर आए और पवन का स्पर्श भी अंदर आए तो ऐसा तभी संभव है जब आप खाना किसी खुले बर्तन में बनाएं और वो खुला बर्तन सिर्फ मिटटी की हांड़ी ही है.

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