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अकरकरा एक मात्र ऐसी औषधि है जिसको खाने से लकवा तो सूँघने से मिर्ग़ी पूरी तरह से ठीक हो जाती है

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अकरकरा का पौधा | अकरकरा के फायदे और लाभ इन हिंदी | अकरकरा का उपयोग

अकरकरा का पौधा अल्जीरिया में सबसे अधिक मात्रा में पैदा होता है। भारत में यह कश्मीर, आसाम, बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में, गुजरात और महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि में कहीं-कहीं उगता है।

वर्षा के शुरू में ही इसका झाड़ीदार पौधा उगना प्रारंभ हो जाता है। अकरकरा का तना रोएन्दार और ग्रंथियुक्त होता है। अकरकरा की छाल कड़वी और मटमैले रंग की होती है।

इसके फूल पीले रंग के गंधयुक्त और मुंडक आकर में लगते हैं। जड़ 8 से 10 सेमी लंबी और लगभग 1.5 सेमी चौड़ी तथा मजबूत और मटमैली होती है।

आइये जानें अकरकरा पाउडर, अकरकरा आयल, अकरकरा चूर्ण, अकरकरा पतंजलि, अकरकरा रेट, अकरकरा की जड़, अकरकरा जड़ी बूटी, अकरकरा के प्रयोग।
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सामग्री

अकरकरा पिसा हुआ : 15 ग्राम
मुनक्का का बीज : 30 ग्राम

दवा बनाने की विधि

• 15 ग्राम पिसा हुआ अकरकरा और 30 ग्राम बीज निकले हुए मुनक्का को मिलाकर उसकी चने के आकार के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें।

• इसे सुबह और शाम को एक-एक गोली लेने से लकवा और पिसे हुए अकरकरा को नाक में सूंघने से मिर्ग़ी का रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

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किन बातो का ख्याल

• अकरकरा का बाहृय प्रयोग अधिक मात्रा में करने से त्वचा का रंग लाल हो जाता है तथा उस पर जलन होती है।

• यदि इसका सेवन आन्तरिक रूप से अधिक किया गया हो तो इससे- नाड़ी की गति बढ़ना, दस्त लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, बेहोशी छाना, रक्तपित्त आदि दुष्प्रभाव पैदा हो जाते हैं।

• फेफड़ों के लिए भी यह हानिकारक होता है, क्योंकि इससे उनकी गति बढ़ जाती है।

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